साक्षात्कार- नेविष
अकसर बदलाव के बारे में हम सुनते रहते हैं। अपनी रोज़ की ज़िन्दगी में भी,कहीं जाते हुए,कोई काम करते हुए या यूँही बैठे हुए कितनी ही चीजें है जिन्हें हम देखते हैं या महसूस करते हैं या जिनसे होकर गुज़रते हैं और चाहते हैं की काश हम इन चीजों को बदल पाते! या हम ऐसा कुछ कर पाते जिससे की किसी व्यवस्था या नियम-कानूनों या लोगों की मानसिकता में परिवर्तन हो पाता। कमी जिस बात की रहती है वो किसी भी दिशा में उठाये गए कदम की है, जिसे उठाने में बहुत से लोग चूक जाते हैं। लेकिन हमारे बीच में बहुत से ऐसे लोग हैं जिहोंने न सिर्फ बदलाव को जरूरी माना, बल्कि उस दिशा में कदम भी बढ़ाये और लगातार लोगों के बीच में रहते हुए बहुत से काम भी कर रहे हैं। आज हमने जिनसे बात की वे भी इसी तरह के व्यक्ति है जिन्होंने बदलाव की बात को सिर्फ सोचने या कहने तक सीमित नही रखा। नेविष होमो रोमांटिक ए सेक्सुअल हैं। सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इंडियन ए सेक्सुअलस् नाम की संस्था से जुड़े हैं, साथ ही वी एम्ब्रेस नाम की संस्था के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं। मूलतः गोरखपुर से आते हैं। दिल्ली में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ए सेक्सुअल समुदाय की बेहतरी से जुड़े कार्यों को करने के साथ साथ नेविष झुग्गियों में रहने वाले बच्चों की शिक्षा पर काम और पशु-पक्षियों की सहायता करने जैसे काम भी लगातार कर रहे हैं।आश्वस्त होने में लगा समयअपनी सेक्सुअलिटी के बारे में जानने और समझने में आपको कितना समय लगा? नेविष बताते हैं कि उस समय अपनी यौनिकता के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नही था। शुरुआत में मुझे लगता था कि मैं होमोसेक्सुअल हूँ लेकिन होमोसेक्सयूएलिटी की जो परिभाषाएँ थीं उनमें मैं अपने आप को जमा नही पा रहा था।तब मुझे लगा की कुछ तो कमी है या गलत है जो मैं समझ नही पा रहा हूँ। मैंने बहुत से लोगों से बात की लेकिन तब लोगों को ए सेक्सुअलिटी के बारे में इतना पता भी नही था। इससे हुआ ये की चीजें और उलझ गयीं और मुझे कुछ पता भी नही चल सका। आगे नेविष बताते हैं कि 2015 या 2016 की बात है जब दिल्ली में एक फ़िल्म फेस्टिवल हुआ था जिसमें क्वीर फिल्में दिखाई जा रही थी, तब मैं वहाँ गया और तभी मैंने वहाँ ए सेक्सुअलिटी के बारे सुना। फिर मैंने इसके बारे में पढ़ना शुरू किया। तब मुझे पता चला की मैं होमो रोमांटिक ए सेक्सुअल हूँ।ए सेक्सुअलिटी के प्रति लोगों के नज़रिये पर बात करते हुए नेविष बताते हैं की हेट्रोसेक्सुअल समाज में ए सेक्सुअल अल्पसंख्यक हैं।
लोगों के भीतर होमोफोबिया और एस्फोबिया भरा हुआ है। वे आगे कहते हैं कि जब मैं किसी को इस बारे में बताता था तो वो लोग हँसते थे की कोई ए सेक्सुअल कैसे हो सकता है। यहाँ तक की कुछ कुछ क्वीर समुदाय के लोगों को भी इस बारे में पता नही था। ऐसे ही कुछ असंवेदनशील कांउसलर रहे,जो खुद इस बारे में कुछ नही जानते थे। शुरुआत में सभी का व्यवहार ऐसा रहा लेकिन समय के साथ धीरे धीरे दोस्तों ने भी समझा और स्वीकार किया। बड़े पैमाने पर देखें तो ए सेक्सुअलिटी को लेकर भेदभाव अभी भी बना हुआ है। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कहा कि अगर सेक्सुअल भावना तुम्हारे भीतर नही है तो क्वीर आंदोलन का हिस्सा बनने की होड़ में क्यूँ लगे हो।इंडियन ए-सेक्सुअल्स के साथ के बाद का सफरनेविष बताते हैं की अपनी पहचान के बारे में आश्वस्त होने के बाद उन्होंने विभिन्न संस्थाओं और क्वीर सपोर्ट समूहों को ढूँढा। और अंत में उन्होंने इंडियन ए सेक्सुअल्स के साथ काम करना शुरू किया, जिसके संस्थापक राज सक्सेना हैं। उसके बाद से उन्होंने ए सेक्सुअलिटी पर काम करना शुरू किया।इसके अलावा उन्होंने दिल्ली में सेक्सुअल हेल्थ काउंसलर के रूप में काम किया। इसके अलावा LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के लिए स्वयंसेवक के रूप में कर रहे हैं। झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के लिए काम कर रहे हैं विशेषकर उनकी शिक्षा और जेंडर संवेदनशीलता लाने के लिए। नेविष कहते हैं की झुग्गियों में जो लोग शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे उन में से अधिकतर क्वीर समुदाय के सदस्य थे।कुछ ट्रांसवीमेन वहाँ शिक्षा के लिए आती, उन्हें सेन्स्टाइज करना, उनसे बात चीत करना ताकि अलग पहचान से बच्चे बचपन से ही परिचित हो सकें और बचपन से ही संवेदनशील बन सकें।वर्तमान में नेविष फेलोशिप के तहत देश के अलग अलग हिस्सों में लोगों के बीच काम कर रहे हैं।नेविष बताते हैं कि इंडियन ए सेक्सुअल में हमने अलग अलग शहरों में बैठकें की। बाद में ऑनलाइन बैठकें भी हुई। हमें लगा की हम ए सेक्सुअल लोगों को तो जोड़ रहे हैं लेकिन जब तक बाकी क्वीर समाज से हम इसका परिचय नही करायेंगे चीजें नही बदलेंगी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमनें दिल्ली में और बैठकें की और इसमें क्वीर समाज के बाकी लोगों को भी बुलाया। ए सेक्सुअलिटी के बारे में संवेदनशीलता फैलाने के लिए हमनें विभिन्न संस्थाओं के साथ,विभिन्न शहरों में और साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से हमनें काम किया।हमनें ए सेक्सुअलस् के लिए डेटिंग एप्लिकेशन बनाया ‘ऐस एप’ नाम से। जो शायद दुनिया का पहला डेटिंग एप है ए सेक्सुअलस् के लिए। इसकी शुरुआत राज सक्सेना ने की थी और इसमें बाद में जाकर मैं भी जुड़ा।वी एम्ब्रेसराज सक्सेना के साथ मिलकर 2018 में हमनें वी एम्ब्रेस नाम का एक और संगठन बनाया। इसे हमनें मानवाधिकारों और पशुओं के अधिकारों के लिए काम करने के लिए बनाया। ताकि सबको साथ लेकर चला जा सके, काम किया जा सके। जिससे इंटरसैक्शनल नारीवाद के नजरिये से सबको देखा जाए। वी एम्ब्रेस एक ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है। यह एक रजिस्टर्ड संस्था है। सरकार को साथ लेकर इसमें काम कर रहे हैं।इसमें अभी ऑनलाइन ज्यादा काम हुआ है।नेविष बताते हैं की लॉक डाउन के समय इस संस्था के माध्यम से हमनें ज्यादा काम किये। लोगों तक खाना और मदद पहुंचाई गई। पशुओं तक खाना पहुँचाया। मैं नही कहूँगा की हम हर जगह पहुँच पाए, लेकिन जितना भी हमसे हो पाया हमनें किया। हमनें ऋषिकेश,आगरा, नोएडा और दिल्ली में काम किया।भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछने पर नेविष कहते हैं की भविष्य में मैं नीतिगत स्तर पर बदलाव लाना चाहता हूँ।अभी हम शिक्षा पर काम कर रहे हैं। एकराह नाम की संस्था के साथ मिलकर हम यमुना के पास की झुग्गियों में शिक्षा पर काम कर रहे हैं। आगरा में भी हमारा एक ओपन स्कूल है।हमारे यहाँ शिक्षा का ढाँचा एक दायरे में सिमटा हुआ है और मेरा लक्ष्य इसे बिना दायरों वाले एक ढाँचे का रूप देना है। राजनीति और नीति के स्तर पर मैं शिक्षा को लेकर काम करना चाहता हूँ।बातचीत के अंत तक आते हुए नेविष कहते हैं की-चीजों को काले या सफेद के दायरे में मत देखिए। जब हम केवल दिन और रात की बात करने लगते हैं तब हम सुबह,दोपहर,संध्या,भोर और मध्यरात्री को भूल जाते हैं।इसलिए किसी दायरे में सिमटने या बात करने की आवश्यकता नही है। हमें आवश्यकता है
तो अपने नज़रिये को विस्तृत करने की।