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 साक्षात्कार – राज सक्सेना

सतरंगी उड़ान
‘इक्कीसवीं सदी’, यह शब्द सुनते हुए भीतर कैसी अजीब सी गर्व करने की सी भावना जन्मती हुई महसूस होती है। समय विज्ञान और तकनीक, विचारों और सिद्धान्तों,धरती और अंतरिक्ष, गाँवों और शहरों के साथ कितना आगे बढ़ आया है। भले ही परिस्थितियों में उतना परिवर्तन ना हुआ हो लेकिन नई पीढ़ी के लोगों ने इस सदी को एक  उम्मीद की तरह, प्रत्येक रूढ़ियों, अनन्यायों, असमानता और झूठे तर्कों के विरूद्ध मजबूती से थामे रखा।सुनने में ये बात चाहे बचकानी लगती हो लेकिन जब हम अपने आस पास देखना शुरू करते हैं तब हमें मालूम होता है की इतनी सारी परेशानियों  के बीच से चीजों को सँभालते और जोड़ते हुए ये लोग ही इस सदी के असल पथप्रदर्शक हैं।Lgbtqia+ समुदाय ने अपने अधिकारों के लिए एक बहुत लंबी लड़ाई लड़ी और अभी भी लड़ रहे हैं। चारों तरफ से घिरे होने के बाद भी एक लंबा कानूनी संघर्ष चला और आखिर उसमें जीत भी मिली। लेकिन धरातल पर नजर डालें तो अभी बस शुरुआत हुई है एक लंबा और कठिन रास्ता अभी आगे बचा हुआ है। हमनें ऐसी ही एक शख्सियत राज सक्सेना जी से बात की जो की ‘होमो रोमांटिक एसेक्सुअल’ हैं, साथ ही ‘इंडियन एसेक्सुअल’ नाम की संस्था के संस्थापक है और क्वीर समाज के हित से जुड़े कार्यों में अग्रणी रहते हैं। हमनें उनसे ये जानने की कोशिश की कि अपने आप तक पहुँचने की उनकी ये यात्रा कैसी रही? किस तरह की परेशानियों का सामना उन्हें करना पड़ा? कैसे उन्होंने खुद को मजबूत किया ?और आज के समय में दूसरे लोगों की सहायता भी कर रहे हैं।
‘होमो रोमांटिक ए-सेक्सुअल’
   आपने कब जाना की आप ‘ए-सेक्सुअल’ है?  राज कहते हैं, ‘मुझे सबसे पहले ये 2012 में पता चला जब मैं गूगल पर  ‘lgbtqia+’ के बारे में पढ़ रहा था।उसे पढ़ते हुए ‘ए सेक्सुअलिटी’ शब्द निकल कर आया, जिसको पढ़ते हुए मुझे लगा की मेरी भावनाओं के लिए ये बिलकुल सहीं शब्द है।फिर मैंने इसके बारे में और पढ़ना शुरू किया। और फिर मैंने ‘होमो रोमांटिक ए-सेक्सुअल’ से खुद को जोड़ा। क्यूँकि  इससे पहले तो सब ‘कंफ्यूजन’ था, मुझे समलैंगिक आकर्षण था लेकिन वो सेक्सुअल नही था रोमांटिक था। उस समय 2012 के करीब जब मैं किसी से बात करता था तो बात कहीं न कहीं से सेक्स के ऊपर आकर रुक जाती थीं जो मैं नही चाहता था। ये वो समय था जब मैं स्नातक कर रहा था। अपने आप को उस समय मैं समलैंगिक या विषमलैंगिक किसी भी समाज समाहित नही कर पा रहा था।’
जानते-जानते जाना


Lgbtqia+ समुदाय या एसेक्सुअलिटी के बारें में जानकारियाँ जुटाने में कौन सी चीजें सहायक रहीं?
राज बताते हैं, जब मैंने पढ़ना शुरू किया था तब सबसे ज्यादा मदद मुझे इंटरनेट के माध्यम से मिली। ए सेक्सुअलिटी विजिबिलिटी एजुकेशन नेटवर्क से सबसे ज्यादा चीजें मैंने सीखी, जानी। इसके अलावा फेसबुक पर मौजूद ‘इंडियन ए सेक्सुअल ग्रुप’ जिससे एक सदस्य के रूप में मैं जुड़ा और आज की तारीख में जिसका संचालक मैं खुद हूँ, से सहायता मिली। इसके अलावा भारत में उस समय कोई माध्यम नही था, ना लेख, ना वीडियो, ना वेबसाइट जहाँ से कुछ जाना जा सके।कोई इस बारे में बात करने को भी तैयार नही था। 2013 में मैंने संज्ञान लेते हुए ‘इंडियन ए-सेक्सुअल’ की स्थापना की। व्यक्तिगत अनुभवों की बात करूँ तो ऐसा भी हुआ है कि दो बड़ी संस्थाओं ने भी मेरी मदद नही की और कारण ये रहा की उन्हें खुद ही ए सेक्सुअलिटी के बारे में कोई जानकारी नही थी।उन्होंने मुझे कहा की ये आपका हॉर्मोनल डिसऑर्डर है या मेडिकल कंडीशन है तो आप एक बार डॉक्टर को दिखाएंगे तो आपको सेक्सुअल एट्रेक्शन होने लगेगा। आगे राज कहते हैं की खैर भारत मे ऐसी उम्मीद की ही जा सकती है।बदलाव तो हो रहे हैं लेकिन कई जगह ऐसा है की समुदाय के भीतर ही लोगों को ए सेक्सुअलिटी के बारे में नही पता।

लोग क्या कहेंगें
जब आपने अपने परिवार या दोस्तों से इस बारे में बात की तो उनकी प्रतिक्रिया या रही? क्या उन्होंने आपको समझने का प्रयास किया?
राज कहते हैं कि, सबकी अलग अलग तरह की प्रतिक्रियाएं रहीं। सबसे पहले 2015 में मैंने अपने सगे भाई बहनों को बताया।वो बताते हैं “वो होली का दिन था और उस दिन एक फ़िल्म आई थी जय गंगाजल प्रियंका चोपड़ा की। मैं और मेरी बहन फ़िल्म देख लैपटॉप पर, मेरा भाई फोन पर कुछ देख रहा था। मेरे भाई बहन घर से बाहर रहते हैं और त्योहारों के समय ही घर आते हैं और मैं काफ़ी सालों से उनको बताना चाहता था और इस समय को मैंने अपनी बात कहने के लिए उपयुक्त पाया।मैंने फ़िल्म को बीच मे रोका और उनसे कहा की मुझे तुमसे बात करनी है तो मेरे साथ चलो। आगे राज कहते हैं की मैंने कब उनसे कहा की मुझे तुमको कुछ बताना है और ये मेरी सेक्सुअलिटी के बारे में है तो उन्होंने एक दूसरे की तरफ संशय भरी नजरों से देखा। मैंने उन्हें बताया की मुझे समलैंगिक आकर्षण है लेकिन वह सेक्सुअल नही है और मैं होमो रोमांटिक ए-सेक्सुअल हूँ। पहले तो उन्हें समझ ही नही आया, होमो सेक्सुअल बोलता तो शायद समझ लेते।मैंने उन्हें विस्तार से पूरी बात बताई लेकिन शायद वे इस बात को समझने के लिए पूरी तरह तैयार नही थे। उन्होंने मुझे अभी समय लेने,सोचने और पढ़ने पर ध्यान देने के लिए कहा।अगले दिन शाम में जब मैं उनसे मिला तो वे लोग विकिपीडिया से ए-सेक्सुअलिटी के बारे में पढ़ रहे थे। इस पूरे प्रकरण में यह एक सकारात्मक बिंदु था कि मेरे भाई-बहन अपने आप को इस विषय में शिक्षित करने की कोशिश कर रहे थे।लेकिन मैं जानता था कि उससे कोई उपलब्धि नही मिलने वाली थी क्योंकि विकिपीडिया में जिस शब्दावली का प्रयोग हुआ था उसे समझना एक आम भारतीय परिवार से आने वाले व्यक्ति के लिए बेहद कठिन था। हमें खुद इन्हें समझने में आठ-नौ साल लग गए तब उनके लिए तो यह सीखने के पहले दिन जैसा था। लेकिन फिर भी ये बात सुखद थी कि वे प्रयास कर रहे थे। एक साल बाद जब मैंने फिर से उनसे इस विषय पर बात की तब उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे साथ हैं तुम अपनी पढ़ाई और नौकरी पे ध्यान लगाओ।
मुझे फर्क नही पड़ता की मेरे खानदान के लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं।मुझे फर्क इस बात से पड़ता है की मेरे भाई-बहन और माँ मेरे बारे में क्या सोचते हैं।
बातचीत का अभाव
राज कहते हैं, मेरे लिए ये बात हमेशा सुखद रही की मेरे भाई-बहन  मेरी तरफ सकारात्मक और सहयोगी रहे। हाँलाकि मेरी निजी जिंदगी के बारे में वो मुझसे बात नही करते। मैं किसी रिश्ते में हूँ या किसी को डेट कर रहा हूँ ऐसे सवालों से या इस पर बात करने में वे हमेशा ही कतराते हैं। खैर ये भी सच है की जब मेरी या मेरे निर्णयों की स्वीकार्यता की बात आती है तब वे पीछे भी नही हटते। लेकिन कभी मुझसे मेरे निर्णयों या इच्छाओं के बारे में खुल कर बात भी नही करते।मुझे जहाँ तक लगता है वे मुझे किसी लड़के के साथ रहने से ज्यादा अकेले रहने के निर्णय पर ज्यादा सहयोग करेंगें। शायद मैं गलत भी हो सकता हूँ लेकिन चूँकि हम इसपे बात नही करते तो चीज़ें साफ नही होती।मैं चाहता हूँ मेरे भाई-बहन मेरी व्यक्तिगत ज़िन्दगी के बारे में मुझे खुलकर पूछें और बात करें।आगे वे कहते हैं इस मामले में मेरे कॉलेज के दोस्तों ने मुझे बहुत अच्छे से समझा और सहयोग किया। उन्होंने बाकी चीजों की तरह की मेरे निजी जीवन पर भी निसंकोच ओर खुलकर बातें की।
इंडियन ए-सेक्सुअलस्
इंडियन ए-सेक्सुअलस् क्या है? और यह कैसे काम करता है?
राज बताते हैं, इंडियन ए-सेक्सुअलस् ऐसा पहला मंच है जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से काम करता है। पहले पहल इसकी शुरूआत हमनें एक फेसबुक पेज से की।इस पेज पर हमनें ए-सेक्सुअलिटी के बारे में पोस्टर बना कर डाला था, जिसे हमनें इंडिया के ए-सेक्सुअल समूह में साझा किया, उस समूह से लोगों ने हमारे पेज को पसंद करना शुरू किया।शुरुआत में 10-12 लाइक हमें मिले, लोगों को लगा की काम हो रहा है। 2013 में हम तीन ए-सेक्सुअल लोगों ने मिल कर एक बैठक की। इसमें चर्चा करते हुए हमनें पाया की हम तीनों अनुभव लगभग एक समान हैं।हमारे सोचने का तरीका, पहचान को लेकर या ए-सेक्सुअल रिलेशनशिप को लेकर मानसिकता एक समान थी। तब हमें महसूस हुआ की पूरे देश में हमारे ही जैसे कितने ही लोग होंगे।और बहुत को तो इस बारे में पता ही नही होगा, जो अभी भी असमंजस की स्थिति में होंगें।तब फेसबुक पर ही हमनें दूसरे क्वीर समूहों में पोस्ट करना शुरु किया। 2014 से ऑफलाइन बैठकें ज्यादा की। क्वीर समाज के और लोगों को भी हमनें इसमें बुलाया और उन्हें ए-सेक्ससुअलिटी के बारे में शिक्षित करना शुरू किया।वर्तमान में हमारी संस्था का काफ़ी विस्तार हुआ है। इसपर हम वेबनार,सेमिनार करते हैं। क्रम से साल में बैठकें भी करते हैं।किसी बड़े शहर में अगर परेड़ हो रही हो तो उससे पहले हम वहाँ कोई कार्यक्रम करते हैं, जिसमें समुदाय के सभी सदस्यों को बुलाया जाता है। इसके साथ ही हमनें ए-सेक्सुअल मैट्रीमोनी सर्विस की शुरुआत भी की है।हमनें देश के अलग-अलग राज्यों से आठ प्रतिनिधियों का चुनाव किया है, जो अपनी अपनी भाषा में ए-सेक्सुअलिटी से जुड़ी सामग्री का अपनी अपनी भाषा मे अनुवाद कर रहे हैं।

अकसर कुछ लोग ए-सेक्ससुअलिटी को आध्यात्मिक रंग ओढ़ाने की कोशिश करते हैं नज़र आते हैं, क्या ऐसे लोगों से आपका भी कभी पाला पड़ा?
राज कहते हैं,इस बारे में मुझे ऐसा कोई व्यक्तिगत अनुभव तो नही रहा है। लेकिन जो ए-सेक्सुअल लोग मुझसे मिलने आते हैं वो अकसर मुझे इस तरह की घटनाओं के बारे में बताते हैं।ऐसा धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों और परिवारों में ही ज्यादा होता है। राज बताते हैं कि ऐसा जरूर हुआ की फेसबुक पर ही किसी व्यक्ति ने उन्हें कहाँ की आप दिव्य आत्मा हैं क्योंकि आप सेक्स नही करना चाहते। फिर मैंने उन्हें इस बारे समझाया और कुछ पढ़ने की सामग्री देकर शिक्षित करने का प्रयास किया।

स्वीकार्यता विशेधिकार है।
कुछ ऐसा जो आप उन सभी से कहना चाहें जो आगे आने की और अपनी पहचान स्वीकारने की कोशिश कर रहे हैं?
राज कहते हैं, मुझे लगता है अपने बारे में निकल कर आना और बात कर पाना एक तरह का विशेधिकार है।सब के आसपास का माहौल या हालात ऐसे नही होते की हम सामने आकर बात कर पाएं। अगर परिस्थितियाँ ठीक नही हैं या आपके परिवार में लोग समझने की स्थिति में नही हैं तो सबसे पहले हमें सुरक्षित रहने पर ध्यान देना चाहिए।अपने लिए उपयुक्त साथी जो ए-सेक्सुअल हो ढूँढने की कोशिश करनी चाहिए। निकल कर आना ना प्राथमिकता है न आवश्यक ही है। अगर छुपा कर चीज़ें बेहतर हैं तो उन्हें वैसा ही रहने दें। अगर आप हमसे बात करना चाहते हैं या आप चाहते हैं की हम आपके परिवार से बात करें तो उसके लिए भी हम हमेशा तैयार हैं। लेकिन पहला कदम सुरक्षा है। लेकिन फिर अगर आप खुल कर सामने आना चाहते हैं बिना कुछ छुपाये तो सबसे पहले आप आत्मनिर्भर बनिए। आत्मनिर्भरता आपके सामने अपनी इच्छा से ज़िन्दगी की नई शुरुआत करने के रास्ते खोलेगी।अगर आपका परिवार या दोस्त आपको समझ नही पा रहे हैं या स्वीकार नही कर पा रहे हैं, तो उन्हें समय दीजिए। जरा सोचिए अपने आपको खोजने में और समझने में जब हमें सालों लग जातें हैं तो उन्होंने तो ये पहली बार सुना है। अगर परिवार आपके करीब है तो कोशिश कीजिए की बीच बीच में उन्हें आप शिक्षित करते हैं, बताते रहें।सुरक्षा,आत्मनिर्भरता और शिक्षा इन्हीं से हम किसी समाधान पर पहुँच सकते हैं।

Nikita Naithani

Nikita is a graduate in Political Science and AIQA's hindi content writer