क्वारंटाइन और मैत्री
By Shailey Mishra
दोस्तों ! मैं बिहार के एक छोटे टाऊन से हूँ और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की छात्रा हूँ। बनारस में रहते हुए ये दूसरा साल है और तकरीबन डेढ़ साल से एक भांगरा डांसर जो दिल्ली से हैं, उनके साथ रिश्ते में हूँ। इस होली कॉलेज से छुट्टी मिलने पर अपने चार दोस्तों के साथ घर आ गयी थी, बाकि तीन दोस्त मेरे ही शहर के हैं और एक दिल्ली से है, जी वो एक दिल्ली वाली लड़की असल में मेरी पार्टनर है।
हाँ वो इससे पहले दो बार मेरे घर आ चुकी है, नहीं घर वाले नहीं जानते कि वो मेरी पार्टनर है।पर इस दफा मामला थोड़ा अलग है, क्योंकि होली की छुट्टी लॉकडाउन में तब्दील हो गई है, मैं और मेरी पार्टनर मेरे परिवार के साथ लॉकडाउन में हैं। मेरा भाई और मैं ट्विन्स हूँ, नहीं उसको कभी बताया नहीं कि “गर्लफ्रैंड” साथ आई है, “फ्रेंड” नहीं। हांलकि बताने न बताने का कोई मतलब भी नहीं बनता है, क्योंकि उसे पता है की वो मेरी गर्लफ्रैंड है। इसीलिए कमरे से ऊब कर छत पर जब भी मैंने उसे गले से लगाया है, भाई हर बार बोलता है दूसरी छत पर और भी लोग देख रहे हैं। माँ, मैं और वो एक ही बेड शेयर कर रहे है आजकल।
एक एडवेंचर वाली बात बताऊँ, माँ के गहरी नींद में जाने के बाद उसे जी भरकर चुमना एक अजब ही एम्यूजमेंट वाली फीलिंग है। मुझे माफ़ करना मैं कोई लेखिका तो हूँ नहीं कि शब्दों को एक अच्छी भाषा दे सकूँ मगर किस्से सुनाने लायक बना दूंगी।माँ को भी नहीं बताया है कुछ मेरी ज़िंदगी में आए इस इश्क़ के बारे में जो एक लड़की पहले और बाद में मुझसे दस साल बड़ी है। पर माँ तो माँ ही है भाईसाहब सब जानती है, सबकुछ।
तभी तो बहुत सहजता से उसे गले लगा के दिन का एक वक्त गुजरता है, माँ देखती है मुझे और उसे कडल करते हुए दिन के पहरों में, पर माँ बहुत सहज है, और ये सहजता क्वारंटाइन के दिनों को मेरे लिए थोड़ा रिलैक्सिंग बना देती है। मैं और वो दिन में लोगों से नजरे चुराकर घर का कोई कोना चूमने के लिए ताक ही लेते हैं। एक और बात बताऊ मेरी माँ अपने ज़ख्म उसे बताती है, दोनों में दोस्ती हो गयी है, वो घर के छोटे छोटे काम में माँ की मदद भी करती है और भाई या डैड से पहले खाना मेरी माँ को खिलाती है ये कहते हुए कि ” घर की औरत सेहतमंद होनी चाहिए क्योंकि उसका होना घर के लिए ज़रूरी है” ।
मेरा भाई भी काफी घुल मिल गया है इसके साथ, किताबें पढ़ता है और इससे किताबें ख़रीदवाता भी है। दोनों एक दूसरे की खूब टांग खिंचते है। मेरी मातृभाषा मैथिली और उसकी पहाड़ी है। तो वो मैथिली सीख रही है आजकल, टूटा फूटा बोलने लगी है। होली पर एक पड़ोसी के घर दावत पर उसने सबको टूटी फूटी मैथिली में ग्रीट किया, लोग और मेरी जान दोनों ही इस नए परिवेश को खूब एन्जॉय कर रहे थे। मेरे घर वालो को रोज एक पहाड़ी गीत सुनाती है। पहाड़ के तमाम किस्से मेरे पिता हर रात लूडो खेलते वक़्त सुनते हैं उससे, और वो बिलकुल तितली की तरह उन्हें अपनी आवाज़ की सड़कों से पहाड़ घुमा लाती है।मैं और वो इन दिनों साहित्य की किताबें पढ़ रहे हैं, देश के हालात को समझ रहे हैं, फँसे हुए लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहे है, सिनेमा देख रहे है और भोजन पचाने को सुबह एक्सरसाइज भी कर लिया करते है।
क्वारंटाइन में प्रेम कीजिए उन सबको जो आपके नजदीक हैं और उन सबसे भी जो आपसे काफी दूर हैं। अपने अंदर के इंसान को जगाकर रखिए, बाहर हैवान मीडिया चैन को वैसे भी बदहवास करने का काम कर रही हैं। और सबसे ज़रूरी बात, बातें करते रहिए क्योंकि लोगों को चाहिए कहने को एक दोस्त और सुनने को एक साथी। तो दूर तलक फैल जाइए, टेलीफोन के तार से भी दूर तलक। और इस क्वारंटाइन आपसे कहने और सुनने के लिए हम आपके करीब है, टेलीफोन स्क्रीन पर उंगलियाँ चलाने जितना सहज है हमसे बात करना, फिर आइए कहा सुना जाए।
तो यारी दोस्ती ज़िंदाबाद!!